इस पोस्ट में हम ये समझेंगे article 370 in hindi और उसके सभी पहलुओं पर चर्चा करेंगे धारा 370 पर राष्ट्रपति की सहमति से गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से article 370 एवं 35(A) हटाने संकल्प पत्र पेश किया गया।
इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर राज्य में केवल धारा 370 के खंड 1 को ही जस की तस रखा गया है। वास्तव में धारा 370 का खंड 1 देश के राष्ट्रपति को जम्मू-कश्मीर राज्य पर विशेषाधिकार प्रदान करता है। इसी के साथ राज्य में अर्टिकल 370 के बाकी अन्य सभी खंडों को पूरी तरह से रद्द कर दिया गया।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा Article 370 के खंड 1 का प्रयोग
भारतीय संविधान के जम्मू एवं कश्मीर राज्य के संदर्भ में उल्लेखित धारा 370 का खंड 1 भारत के राष्ट्रपति को राज्य के संबंध में विशेषाधिकार प्रदान करता है। जिसके तहत देश का राष्ट्रपति को जम्मू तथा कश्मीर राज्य में ‘राज्य विषयों’ के लाभ के लिए संविधान में ‘अपवाद तथा संशोधन’ करने के अधिकार प्राप्त हैं।
भारत के वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने धारा 370 के खंड 1 में दिए गए प्रावधानों का प्रयोग करते हुए वर्तमान केंद्र सरकार को जम्मू कश्मीर राज्य में article 370 के खंड 1 को छोड़कर, शेष सभी खंड तथा आर्टिकल 35(A) को रद्द करने की मंजूरी प्रदान की गई।
इसी के आधार पर देश के गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में धारा 370 पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा जारी अधिसूचना पेश करते हुए article 370(Article 370 in Hindi) के खंड 1 को छोड़कर बाकी सभी खंडों को समाप्त करने के लिए राज्यसभा में संकल्प प्रस्तुत किया गया।
गृहमंत्री द्वारा राज्यसभा में प्रस्तुत संकल्प पत्र का असर
- जम्मू एवं कश्मीर राज्य से धारा 370(Article 370 in Hindi) के खंड एक को छोड़कर संपूर्ण खंड रद्द किये गय, जिसके परिणाम स्वरुप article 370 लगभग समाप्त हो गई।
- इसी कड़ी में गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू एवं कश्मीर राज्य के संदर्भ में धारा 370 के तहत आर्टिकल 35(A) को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया।
- वर्ष 1954 में बने कानून में संशोधन करते हुए जम्मू एवं कश्मीर राज्य को दो हिस्सों में विभाजित कर दिया गया। पहला हिस्सा जम्मू एवं कश्मीर तथा दूसरा हिस्सा लद्दाख को बनाया गया।
- जम्मू एवं कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त करते हुए केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया।
- लद्दाख को भी जम्मू एवं कश्मीर राज्य से अलग करते हुए बिना विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया।
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Jammu-Kashmir के संदर्भ में Article 370
27 मई 1949 को आर्टिकल 306(A) (जिसे वर्तमान में धारा 370(Article 370 in Hindi) के नाम से जाना जाता है) में कुछ आंशिक संशोधन के उपरांत जम्मू एवं कश्मीर राज्य विधान सभा द्वारा इसे स्वीकार किया गया। जिसे बाद में 17 अक्टूबर 1949 को भारतीय संविधान में स्थान दिया गया।
इस आर्टिकल का मसौदा तत्कालीन जम्मू कश्मीर सरकार द्वारा तैयार किया गया था तथा यह मसौदा जम्मू एवं कश्मीर राज्य का भारत के साथ रिश्तों की व्याख्या करता है।
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Jammu-Kashmir को धारा 370 से प्राप्त विशेषाधिकार
- article 370 का निमार्ण भारत सरकार के साथ जम्मू एवं कश्मीर राज्य के संबंधों का वर्णन करने के लिए किया गया था।
- इसमें स्पष्ट उल्लेख किया गया था, कि भारत सरकार केवल विदेशी मामले, रक्षा तथा संचार आदि क्षेत्रों को छोड़कर जम्मू एवं कश्मीर राज्य के संदर्भ में राज्य विधानसभा के अनुमोदन के बिना अन्य किसी मामले पर कोई कानून नहीं बना सकती है।
- जम्मू कश्मीर राज्य के संदर्भ में article 370 में यह प्रावधान किया गया था, कि यदि केंद्र सरकार राज्य के संदर्भ में किसी प्रकार का कोई कानून बनाना चाहती है, तो सर्वप्रथम उसे जम्मू कश्मीर विधानसभा से परामर्श लेना आवश्यक होगा तथा इसके उपरांत राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही देश की संसद किसी प्रकार का कानून बना सकती है।
- भारतीय संविधान के भाग 219 अस्थाई संक्रमण कालीन तथा विशेष उपबंध के अंतर्गत जम्मू एवं कश्मीर राज्य के संदर्भ में धारा 370 का उल्लेख किया गया था।
- आर्टिकल 370 जम्मू एवं कश्मीर राज्य में देश के संविधान को पूरी तरह से लागू होने से रोकता है तथा राज्य को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करता है।
- इसी का परिणाम है, कि धारा 370 राष्ट्रपति को जम्मू एवं कश्मीर राज्य की विधानसभा को भंग करने का अधिकार नहीं देती है। जिसकी वजह से राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू नहीं किया जा सकता था।
- इसके अलावा जम्मू एवं कश्मीर राज्य में धारा 370 के कारण ही संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत वित्तीय आपातकाल की घोषणा लागू नहीं की जा सकती थी।
- आर्टिकल 370 जम्मू एवं कश्मीर राज्य को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करने के अलावा यह राज्य की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्ष के लिए निर्धारित करती है।
- धारा 370 जम्मू एवं कश्मीर राज्य को अपना पृथक संविधान तथा अपना स्वयं का झंडा रखने का अधिकार प्रदान करती है। इसी के परिणाम स्वरूप इस राज्य में राष्ट्रीय ध्वज के अपमान को कानूनन जुर्म नहीं माना जाता था।
- वास्तव में देखा जाए तो धारा 370 जम्मू एवं कश्मीर राज्य का भारत में विलय को परिभाषित करती है।
Jammu-Kashmir के संदर्भ में आर्टिकल 35(A)
वर्ष 1954 के दौरान भारत के राष्ट्रपति के आदेश अनुसार जम्मू एवं कश्मीर राज्य के संदर्भ में धारा 370 के तहत आर्टिकल 35(A) को भारतीय संविधान में सम्मिलित किया गया। आर्टिकल 35(A) का प्रावधान जम्मू एवं कश्मीर राज्य के लोकप्रिय नेता शेख अब्दुल्लाह तथा भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के मध्य वर्ष 1949 में किए गए समझौते का नतीजा था।
जम्मू एवं कश्मीर राज्य के राजा हरि सिंह ने 20वीं शताब्दी की शुरुआत में राज्य के स्थाई निवासियों हेतु डोगरा नियमों के तहत नीयम लागू कराए गये थे। वर्ष 1947 तक जम्मू एवं कश्मीर राज्य में राजशाही थी तथा इसे ‘इंस्ट्रूमेंट आफ एसेशन’ (आईओए) के अंतर्गत भारत में विलय किया गया था।
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Jammu-Kashmir में Article 35(A) द्वारा नागरिकता की व्याख्या
जम्मू कश्मीर राज्य के संदर्भ में आर्टिकल 35(A) में शामिल प्रावधान आर्टिकल 356 के तहत जम्मू एवं कश्मीर राज्य के स्थाई निवासियों की व्याख्या की गई थी। जिसके अंतर्गत वर्ष 1911 से पूर्व राज्य में जन्मे ऐसे सभी व्यक्ति जो जम्मू एवं कश्मीर राज्य में विगत 10 वर्ष या उससे अधिक वर्षों से निवासरत हैं तथा
उनके पास राज्य में वैधानिक तरीके से चल/अचल संपत्ति मौजूद है, को ही राज्य का स्थाई नागरिक समझा गया था।
- आर्टिकल 35(A) के ही तहत जम्मू एवं कश्मीर राज्य के प्रवासी जो पाकिस्तान में बस गए हैं, को भी राज्य की नागरिकता प्रदान की गई थी।
- इनके अलावा जम्मू एवं कश्मीर राज्य के ऐसे प्रवासी नागरिक जो राज्य को छोड़कर अन्यत्र बस गए हैं, उनकी दो पीढ़ियों तक को राज्य की नागरिकता आर्टिकल 35(A) द्वारा प्रदान की गई थी।
- जम्मू कश्मीर राज्य में आर्टिकल 35(A) के तहत स्पष्ट उल्लेख किया गया था, कि राज्य के स्थाई निवासियों को छोड़कर कोई भी राज्य से बाहरी व्यक्ति स्थाई निवासी नहीं होगा तथा वह राज्य में स्थाई तौर पर बसने का अधिकार नहीं रखता है।
- आर्टिकल 35(A) केवल जम्मू एवं कश्मीर राज्य के स्थाई निवासियों को ही प्रदेश में सरकारी नौकरियां, संपत्ति की खरीद-बिक्री, स्कॉलरशिप आदि की सुविधा प्रदान करता है।
- इसमें अन्य किसी बाहरी राज्य के व्यक्तियों को इन अधिकारों से वंचित किया गया था।
- आर्टिकल 35(A) यह भी उल्लेख करती है, कि यदि प्रदेश की स्थाई महिला नागरिक किसी राज्य के बाहरी व्यक्ति से विवाह करती है, तो वह राज्य के स्थाई नागरिकता वाली सारी सुविधाओं से वंचित हो जाएगी।
परंतु, वर्ष 2002 में हाई कोर्ट द्वारा सुनाए गए अपने निर्णय में राज्य के बाहरी व्यक्ति से विवाह करने के उपरांत भी राज्य की महिला को सारे अधिकार एवं सुविधाएं पूर्व की भांति देने की व्यवस्था दी गई थी।
परंतु इस निर्णय में कोर्ट ने उक्त महिला की संतान को स्थाई नागरिकता वाली सारी सुविधाओं तथा अधिकारों से वंचित रखने का निर्णय दिया गया था।
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Article 370 एवं आर्टिकल 35(A) हटने से जम्मू एवं कश्मीर राज्य पर पड़ने वाला प्रभाव
- जम्मू एवं कश्मीर राज्य को प्राप्त विशेष राज्य का दर्जा समाप्त हो जाएगा।
- देश के संविधान की धारा 356 के तहत राष्ट्रपति के पास जम्मू एवं कश्मीर राज्य की विधानसभा को भंग करने का अधिकार प्राप्त होगा तथा सीधे तौर पर वहां राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकेगा।
- धारा 370 जिसके द्वारा जम्मू एवं कश्मीर राज्य विधानसभा का कार्यकाल पूरे देश से हटकर 6 वर्ष होता था, को समाप्त किया जा कर अन्य राज्यों की तरह 5 वर्ष ही रखा जा सकेगा।
- जम्मू एवं कश्मीर राज्य का संविधान समाप्त किया जाकर देश का संविधान लागू होगा।
- राज्य में अब तिरंगा ही राष्ट्रीय ध्वज के रूप में जाना जाएगा तथा अन्य राज्यों की तरह इस के अपमान पर कानूनी कार्यवाही की जा सकेगी।
- जम्मू एवं कश्मीर राज्य के नागरिकों को प्राप्त दोहरी नागरिकता समाप्त हो जाएगी तथा उन्हें केवल भारत की नागरिकता ही प्राप्त होगी।
- अल्पसंख्यक समुदायों को भारतीय संविधान के अनुसार जम्मू एवं कश्मीर राज्य में आरक्षण प्राप्त हो सकेगा।
- धारा 370 समाप्त किए जाने के पूर्व राज्य में सूचना का अधिकार कानून लागू नहीं था, परंतु अब इसके दायरे में सभी शासकीय कार्यालय होंगे।
- जम्मू एवं कश्मीर राज्य में संविधान में निहित नीति-निर्देशक तत्व लागू किए जा सकेंगे।
- राज्य के संबंध में किसी भी प्रकार का कानून बनाने के लिए केंद्र सरकार को जम्मू एवं कश्मीर राज्य विधानसभा की अनुमति या सहमति लेने की अनिवार्य नहीं होगी।
- राज्य के बाहर के व्यक्ति भी अब जम्मू एवं कश्मीर राज्य में स्थाई निवासी बन सकेंगे तथा उनके द्वारा चल-अचल संपत्ति की खरीदी की जा सकेगी।
- जम्मू एवं कश्मीर राज्य में भारतीय संविधान की धारा 360 लागू की जा सकेगी। इसके तहत राज्य में वित्तीय आपातकाल की घोषणा की जा सकेगी।
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राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर राज्य पुनर्गठन विधेयक 2019 पारित
5 अगस्त 2019 को देश की केंद्र सरकार द्वारा ऐतिहासिक कदम उठाते हुए जम्मू एवं कश्मीर राज्य से article 370 एवं 35(A) पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया गया। इसी कड़ी में राज्यसभा में जम्मू एवं कश्मीर राज्य पुनर्गठन विधेयक, 2019 गृह मंत्री अमित शाह द्वारा पेश किया गया।
राज्यसभा में विधेयक पर की गई वोटिंग के दौरान पक्ष में 125 तथा विपक्ष में 61 वोट पड़े। इस कारण यह विधेयक आसानी से राज्यसभा से पारित हो गया। वोटिंग के दौरान मशीन में खराबी आने से वोटिंग पर्ची के माध्यम से कराई गई थी।
जम्मू एवं कश्मीर राज्य पुनर्गठन विधेयक, 2019 के राज्यसभा से पारित होने के परिणाम स्वरूप जम्मू एवं कश्मीर राज्य को दो हिस्सों में बांट दिया गया। पहला हिस्सा जम्मू कश्मीर कहलाया तथा दूसरा हिस्सा लद्दाख को बनाया गया। इसके अलावा इन दोनों हिस्सों को ही केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा प्रदान किया गया। इस तरह से देश के 29 राज्यों में से एक राज्य कम हो गया।
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Jammu-Kashmir का भारत में विलय तथा धारा 370 का उदगम
86024 वर्ग मील क्षेत्रफल वाला देश का जम्मू एवं कश्मीर राज्य वर्ष 1947 तक भारत का हिस्सा नहीं था। 15 अगस्त 1947 से पूर्व इस राज्य में राजा हरि सिंह का शासन हुआ करता था। उनके द्वारा जम्मू कश्मीर राज्य को स्वतंत्र राष्ट्र बनाने की योजना के साथ ‘स्टैंड स्टिल’ (भारत अथवा पाकिस्तान किसी का हिस्सा नहीं बनने) का निर्णय किया गया।
परंतु, पाकिस्तान ने पहल करते हुए जम्मू एवं कश्मीर राज्य को अपने कब्जे में लेने के उद्देश्य से इलाके में निवासरत कबीलाईयों को आगे बढ़ने का निर्देश दे दिया गया। इन कबीलाईयों ने जम्मू एवं कश्मीर सूबे में उत्पात मचाते हुए बिजली, सड़क तथा आवश्यक जरूरतों को नष्ट कर दिया गया।
वर्ष 1947 में 4 दिवसीय कश्मीर दौरे पर आए लॉर्ड माउंटबेटन ने राजा हरि सिंह को भारत या पाकिस्तान में से किसी एक राष्ट्र में सम्मिलित होने के लिए कहा गया, परंतु राजा हरि सिंह ने इससे इनकार कर दिया गया। उनके द्वारा लॉर्ड माउंटबेटन को एक तरह से नजरअंदाज कर दिया गया।
देश के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने लॉर्ड माउंटबेटन को स्पष्ट कर दिया था, कि यदि जम्मू एवं कश्मीर राज्य अपनी स्वेच्छा से पाकिस्तान में सम्मिलित होना चाहता है, तो उन्हें उससे कोई भी ऐतराज नहीं होगा। दूसरी ओर पाकिस्तान के आलाकमानों द्वारा राजा हरि सिंह को अपने पक्ष में करने के लिए विभिन्न तरह के प्रलोभन दिए गए।
लेकिन राजा हरि सिंह ने उनके सभी प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया। अपनी इस विफलता के कारण पाकिस्तान ने 22 अक्टूबर 1947 को नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस से विद्रोह कर दिया। पाकिस्तान ने बेहतरीन प्रशिक्षित तथा हथियारों से लैस कबीलाईयों को सैन्य सामग्री के साथ आगे बढ़ने के लिए भेजा, जिन्होंने केवल 5 दिनों में श्रीनगर से 25 मील दूर बारामूला पर कब्जा कर लिया गया।
पाकिस्तान की इस कार्यवाही से घबराते हुए महाराजा हरि सिंह ने भारत सरकार के साथ विलय पत्र ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ एसेशन’ पर अपने हस्ताक्षर किए गए। इसके साथ ही उन्होंने भारत सरकार से पाकिस्तान को रोकने हेतु अपनी सेना भेजने का आग्रह किया गया।
भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर होने के बाद सरकार ने 27 अक्टूबर 1947 को कबीलाईयों के आक्रमण के खिलाफ अपनी सेना भेजने का निर्णय लिया गया। कबीलाईयों को पाकिस्तानी सेना का सपोर्ट होने से भारत को उन्हें वापस भेजने में समय लगा। अंतत: भारतीय सेना ने सख्त कार्यवाही करते हुए उन्हें वापस खदेड़ दिया।
परंतु यह लड़ाई यहीं शांत नहीं हुई, जम्मू एवं कश्मीर राज्य का मसला पेचीदा हो गया और यह संयुक्त राष्ट्र तक जा पहुंचा। यहॉं भी इसका कोई समाधान नहीं निकल सका। परिणाम स्वरूप दोनों देशों की सेनाएं काफी लम्बे समय तक एक-दूसरे के सामने डटी रहीं।
इस दौरान जम्मू कश्मीर राज्य में लोकप्रिय नेता शेख अब्दुल्लाह का उदय हुआ तथा भारत सरकार ने उनके साथ करार करते हुए जम्मू एवं कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्रदान कर राज्य में धारा 370 तथा आर्टिकल 35(A) के स्वरूप को लागू किया गया।
देश में केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या 8 हुई
5 अगस्त 2019 को गृह मंत्री अमित शाह द्वारा राज्यसभा में पेश किए गए संकल्प पत्र में जम्मू एवं कश्मीर राज्य से धारा 370 तथा आर्टिकल 35(A) को पूरी तरह हटाने हेतु संकल्प पत्र सदन के सामने प्रस्तुत किया गया। इसी के साथ ही राज्यसभा में अमित शाह ने जम्मू एवं कश्मीर राज्य पुनर्गठन विधेयक, 2019 को पेश किया।
जिसके तहत उन्होंने लद्दाख को चंडीगढ़ की तर्ज पर बिना विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया। इसके अलावा उनके द्वारा जम्मू-कश्मीर को विधानसभा के साथ एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने की घोषणा की गई। जिसमें प्रशासन दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश के समान ही किया जाएगा।
इस प्रकार केंद्र सरकार द्वारा 5 अगस्त 2019 को 2 नए केंद्र शासित प्रदेशों का निर्माण किया गया। प्रथम जम्मू-कश्मीर तथा द्वितीय लद्दाख। लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश की खासियत यह रही कि इसे चंडीगड़ की तर्ज पर बिना विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया।
इससे पूर्व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र नई दिल्ली, अंडमान तथा निकोबार दीप समूह, चंडीगढ़, दादर और नगर हवेली, दमन और दीव, लक्ष्य दीप तथा पांडुचेरी (कुल 7) केंद्र शासित प्रदेश थे, जिनकी संख्या बढ़कर 9 हो गई।
Kenra Shasit Pradesh Kise Kahte Hain | केंद्र शासित प्रदेश किसे कहते हैं?
देश के संघीय प्रशासनिक ढांचे की एक उप राष्ट्रीय प्रशासनिक इकाई को केंद्र शासित प्रदेश के नाम से जाना जाता है। यहॉं सीधे तौर पर केंद्र सरकार का शासन होता है। केंद्र शासित प्रदेश में प्रशासन के लिए राष्ट्रपति अपना सरकारी प्रशासक अथवा उप-राज्यपाल की नियुक्ति करता है।
केंद्र शासित प्रदेशों के अलावा बाकी सभी राज्यों में आम चुनाव के माध्यम से चुनी गई सरकारों का ही शासन होता है। इस मामले में एकमात्र केंद्र शासित प्रदेश ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली’ को अब तक विशेष दर्जा प्राप्त है।
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Dhara 370 Samapt Hone se Rajya per Padne Wale Prabhav | धारा 370 समाप्त होने से राज्य पर पड़ने वाले
धारा 370 के हट जाने के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य का इतिहास तथा भूगोल दोनों ही परिवर्तित हो गए हैं। इसके परिणाम स्वरूप कुछ याद रखने योग्य तथ्य निम्नानुसार हैं:-
- जम्मू एवं कश्मीर राज्य का राज्य का दर्जा समाप्त करते हुए उसे दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया है। जिसके तहत प्रथम हिस्सा जम्मू-कश्मीर क्षेत्र तथा दूसरा हिस्सा लद्दाख क्षेत्र कहलायेगा।
- जम्मू-कश्मीर क्षेत्र के अंतर्गत कुल 5 लोकसभा सीटें होंगी तथा लद्दाख के हिस्से में केवल एक लोकसभा सीट आएगी।
- इससे पूर्व जम्मू एवं कश्मीर राज्य में अनुच्छेद 239(A) के अंतर्गत शासन किया जाता था।
- पूर्व में जम्मू एवं कश्मीर राज्य की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्ष होता था, परंतु article 370 के समाप्त हो जाने के पश्चात अब इसका कार्यकाल 5 वर्ष ही होगा।
- क्योंकि, जम्मू-कश्मीर क्षेत्र केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया गया है, तो अब वहां केंद्र की तरफ से उप-राज्यपाल का शासन होगा। उप-राज्यपाल जम्मू-कश्मीर क्षेत्र की विधानसभा के लिए विधानसभा में महिलाओं की संख्या कम होने पर दो महिलाओं को नामित कर सकता है।
- अब जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में उप-राज्यपाल का शासन होगा तथा देश की संसद द्वारा बनाया गया कानून अब यहां आसानी से लागू हो सकेगा।
- इसके अलावा जम्मू-कश्मीर क्षेत्र के मुख्यमंत्री की मंत्रिपरिषद विधानसभा के 10% से अधिक नहीं हो सकेगी।
- जम्मू-कश्मीर क्षेत्र की विधानसभा के लिए 107 विधानसभा सीटों को बढ़ाकर 114 करने का प्रस्ताव केंद्र सरकार द्वारा रखा गया है।
- इसके अलावा भारत के कुल राज्यों की संख्या घटकर 28 हो जाएगी तथा कुल केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या 7 से बढ़कर 9 हो जाएगी।